अपनी धरोहर न्यास: संस्कृति, श्रद्धा और समाज का समर्पित संगम
अपनी धरोहर न्यास की स्थापना 16 जुलाई 2021 को उत्तराखंड के प्रमुख कृषि पर्व हरेली के शुभ अवसर पर की गई थी। यह संयोग केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक विचार है — “हरियाली की शुरुआत संस्कृति की जड़ों को सींचने से होती है।” इस न्यास का उद्देश्य उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति, धार्मिक धरोहर, और सामाजिक एकता को पुनर्जीवित करना और उसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना है।
कार्य और पहचाने गए प्रयास
विजय भट्ट जी के नेतृत्व में यह संगठन निरंतर उत्तराखंड की सभ्यता से जुड़ी गतिविधियाँ संचालित कर रहा है। इनमें प्रमुख हैं:
- महिला सम्मेलन – जहां गांव की मातृशक्ति को सामाजिक सहभागिता के लिए प्रेरित किया गया।
- प्रवासी सम्मेलन – देश-विदेश में बसे उत्तराखंडी लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास।
- सामूहिक वृक्षारोपण कार्यक्रम – प्रकृति और संस्कृति के मेल को सशक्त बनाना।
- युवा संवाद – युवा पीढ़ी में सांस्कृतिक चेतना जागृत करना।
श्री गोलू संदेश यात्रा: एक सांस्कृतिक तीर्थ
श्री गोलू देवता, जिन्हें उत्तराखंड का लोक न्याय देवता माना जाता है, उनकी स्मृति और संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए शुरू की गई “श्री गोलू संदेश यात्रा” एक अद्वितीय पहल है। यह यात्रा उत्तराखंड के सभी 13 जिलों को जोड़ते हुए राज्य की आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक बन चुकी है।
- 🔹 2022 में आरंभ की गई यात्रा ने 3500+ किलोमीटर की दूरी तय की है (2024 तक)।
- 🔹 यात्रा से पूर्व 50+ गोष्ठियां, सम्मेलनों, संवादों का आयोजन हुआ।
- 🔹 ग्रामीण अंचलों, मंदिरों, तीर्थों, और स्कूलों में कार्यक्रम हुए।
यात्रा के उद्देश्य:
- उत्तराखंड की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करना
- आध्यात्मिक स्थलों एवं तीर्थों का संरक्षण करना
- लोक कला, लोक साहित्य और पारंपरिक वाद्य यंत्रों का पुनरुत्थान
- स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक ज्ञान को प्रोत्साहन देना
- धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना
सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव
- 🔸 लोक कलाकारों और शिल्पकारों को नई पहचान और मंच मिला।
- 🔸 पर्वतीय अंचलों में सांस्कृतिक पर्यटन को बल मिला।
- 🔸 युवाओं में सांस्कृतिक जागरूकता और गर्व की भावना उत्पन्न हुई।
- 🔸 महिलाएं, बुजुर्ग, शिक्षक और ग्रामीण समुदाय यात्रा के सहभागी बनें।
आगे का संकल्प:
“अपनी धरोहर न्यास” का सपना है कि उत्तराखंड न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बने, बल्कि एक आत्मनिर्भर सांस्कृतिक मॉडल के रूप में देश के सामने उदाहरण बने। भविष्य में:
- सांस्कृतिक संग्रहालयों का निर्माण
- डिजिटल आर्काइविंग (e-Library) द्वारा लोक साहित्य का संरक्षण
- हर जिले में वार्षिक ‘धरोहर मेला’ का आयोजन
- श्री गोलू संदेश यात्रा को अंतरराज्यीय स्तर तक विस्तार
निष्कर्ष:
अपनी धरोहर न्यास केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है — जो उत्तराखंड की परंपराओं को नमन करता है, वर्तमान को सजग करता है, और भविष्य को संस्कारित करता है।